Friday, 31 August 2012

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संसद और विधानसभा के अध्यक्ष के निर्णय की न्यायिक समीक्षा संभवसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह बताया कि संसद और विधानसभा के अध्यक्ष के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती हैनिर्णय में स्पष्ट किया गया कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय संसद और विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित अध्यक्ष के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैंसर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीरिक जोसेफ की पीठ ने अक्टूबर 2010 में कर्नाटक में येद्दयुरप्पा सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने की पूर्व संध्या पर ग्यारह भारतीय जनता पार्टी और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष के आदेश को गलत करार देते हुए इसके कारण जारी कियेन्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीरिक जोसेफ की पीठ ने अपने निर्णय में बताया कि निर्दलीय विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दलबदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकतासर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार कानून में किसी सदस्य के समर्थन देने या वापस लेने पर कोई रोक नहीं हैपीठ ने स्पष्ट किया कि सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों और रैलियों में निर्दलियों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनैतिक दल में शामिल हो गए हैंपीठ ने कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष का विधायकों का अयोग्य ठहराने का आदेश दुर्भावना पूर्ण बतायासाथ ही निर्णय में यह बताया कि कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष सिर्फ फ्लोर टेस्ट के पहले विधायकों को अयोग्य ठहराना चाहते थे इसीलिए उन्होंने इतनी जल्दबाजी में कार्यवाही की जिससे विधायकों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं मिला.
राज्यों में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के समान हो मनरेगा की मजदूरीसर्वोच्च न्यायालय 
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को विभिन्न राज्यों में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के बराबर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगाके तहत न्यूनतम मजदूरी दर तय करने के लिए विचार करने का निर्देश दियासाथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न श्रमिक संगठनों को नोटिस भी जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दियासर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी जोसेफ और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने 23 जनवरी 2012 को मनरेगा की मजदूरी और विभिन्न राज्यों में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के संबंध में निर्णय दियाखंडपीठ के निर्णय के अनुसार मजदूरी एक लाभार्थी का विधान हैफिर न्यूनतम मजदूरी और मनरेगा अधिनियम के अंतर्गत दी जाने वाली मजदूरी में विरोधाभास नहीं होना चाहिए.
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर 2011 के एक निर्णय में बताया था कि मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरीराज्य सरकारों द्वारा कृषि श्रमिकों के लिए निर्धारित की गई न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होनी चाहिएउच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी बताया था कि जिन लोगों ने कम पैसे में काम किया है उन्हें केंद्र को एरियर देना चाहिएकेंद्र सरकार ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.ज्ञातव्य हो कि केंद्रीय रोजगार योजना के तहत पारिश्रमिक अलग-अलग राज्यों में 118 रुपये से 181 रुपये के बीच हैकेंद्रीय रोजगार योजना के तहत पारिश्रमिक छह राज्यों (आंध्र प्रदेशराजस्थानकेरलकर्नाटकमिजोरम और गोवामें अधिसूचित न्यूनतम दैनिक मजदूरी से कम है.
उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया सार्वजनिक किया जाना चाहिएकेंद्रीय सूचना आयोग
उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया और इसमें संशोधन के किसी भी प्रस्ताव को सार्वजनिक किया जाना चाहिएकेंद्रीय सूचना आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के तर्क को खारिज करते हुए यह निर्णय 4 जनवरी 2012 को दिया.
केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने निर्णय में बताया कि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया और इसमें संशोधनों हेतु प्रधान न्यायाधीश  कानून मंत्रालय के बीच हुई वार्ता को सार्वजनिक किया जाएमुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा ने इसके पीछे तर्क दिया कि आम नागरिकों को यह जानकारी होनी चाहिए कि इस विषय से संबंधित प्रमुख पक्षों यानी भारत सरकार  प्रधान न्यायाधीश के मत क्या हैं
सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने पर रोक का तर्क देते हुए बताया कि आवेदक ने जो जानकारी मांगी है वह आरटीआइ दायरे में नहीं आती हैजबकि केंद्रीय सूचना आयोग के अनुसार भारत के प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को संवैधानिक या वैधानिक रूप से इस जानकारी को रखने की जरूरत नहीं हैक्योंकि यह आरटीआइ कानून की धारा 2 (जेके दायरे में नहीं आती हैज्ञातव्य हो कि सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सर्वोच्च न्यायालय में सूचना अधिकार कानून के तहत याचिका दायर की थीयाचिका में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया के संशोधित ज्ञापन के कानून मंत्रालय के मसौदे पर भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन एवं कानून मंत्री के बीच हुए संवाद को सार्वजनिक करने की मांग की गई थी.
पूर्वोत्तर राज्यों के 6 जनजातियों को संवैधानिक अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया
संसद ने पूर्वोत्तर राज्यों मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश के 6 आदिवासियों को संवैधानिक अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मंजूरी 26 दिसंबर 2011 को प्रदान कीइसके साथ ही गेलांग जो मूल शब्द गालो का विकृत शब्द हैउसे सही कर दिया गया.
संवैधानिक (अनुसूचित जनजातिआदेश (संशोधनविधेयक 2011 मणिपुर के 6 समुदायों रोंगमेईइनपुटलियांगमेईजेमीथंगल और मेट को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देगाइस विधेयक ने मूल संवैधानिक (अनुसूचित जनजातिआदेश 1950 में संशोधन की लंबे समय से चली  रही मांग को पूरा किया.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में खाद्य सुरक्षा विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी
सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराने हेतु केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में खाद्य सुरक्षा विधेयक को 18 दिसंबर 2011 को मंजूरी प्रदान कीखाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 75 जबकि शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत आबादी को सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराना हैखाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत ग्रामीण और शहरी गरीबों को प्रति व्यक्ति 7 किलो प्रति माह के हिसाब से अनाज मिलेगाकानून में 5 व्यक्तियों की इकाई को परिवार माना गया है.  केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा विधेयक के क्रियान्वयन के प्रथम वर्ष के लिए 95000 करोड़ रुपये की सब्सिडी का अनुमान लगाया हैयह अनुमान तीसरे साल तक 1.50 लाख करोड़ रुपये हो जाना हैखाद्य सुरक्षा विधेयक के क्रियान्वयन हेतु तीसरे वर्षों में कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए गोदाम बनाने पर 50000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की आवश्यकता होगीखाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारोंगरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों और अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले वर्ग के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है.  खाद्य सुरक्षा विधेयक में प्राथमिकता वाले और सामान्य उपभोक्ता वर्ग के तहत जनता को बांटा गया हैप्राथमिकता वर्ग में आने वाले गरीबों को एक रुपये प्रति किलो की दर पर मोटा अनाजदो रुपये किलो के हिसाब से गेहूं और 3 रुपये किलो के हिसाब से चावल दिया जाएगाजबकि सामान्य उपभोक्ता वर्ग को अनाज के समर्थन मूल्य का 50 फीसदी देना होगाजिन गरीबों को अनाज दिया जाना है उनकी संख्या सामाजिक आर्थिक जनगणना के नतीजे आने के बाद तय की जानी है.
खाद्य सुरक्षा विधेयक के मुख्य प्रावधान:
1. 75 
फीसदी ग्रामीण आबादी तथा 50 फीसदी शहरी परिवारों को दायरे में रखा गया है.
2. 
ग्रामीण और शहरी गरीबों को सात किलो अनाज का अधिकार दिया गया हैइसके तहत तीन रुपये प्रति किलो की दर से चावलदो रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और एक रुपये प्रति किलो की दर से मोटे अनाज दिया जाएगा.
3. 
ग्रामीण और शहरी गरीबों के अलावा सामान्य श्रेणी में हर व्यक्ति को तीन किलो अनाज प्रति माह दिया जाएगा और कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी होगी.
4. 
जिलाराज्य और राष्ट्रीय स्तर पर शिकायत निपटारा प्रक्रिया का प्रावधान है.
5. 
खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रथम वर्ष का बजट 95000 करोड़ रुपए करने का प्रस्ताव है.
6. 
खाद्य सुरक्षा विधेयक के अंतर्गत केंद्र सरकार ने कृषि को बढ़ावा देने के लिए 110000 करोड़ रुपए का निवेश करने का प्रस्ताव रखा है.
7. 
बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाओं को सरकार की तरफ से 1000 रुपए प्रति माह दिए जाने का प्रावधान है.
8. 
बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओंआठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चोंगर्भवती महिलाओं और बूढ़े लोगों को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाएगा.
न्यायालय सड़क दुर्घटना पीड़ितों को ज्यादा मुआवजा दिलाने में सक्षमसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह बताया कि न्यायालय सड़क दुर्घटना पीड़ितों को ज्यादा मुआवजा दिलाने में सक्षम हैंसर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी  न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ ने यह निर्णय 1 नवंबर 2011 को दियाजिसमें पीड़ित की 4.20 लाख की मांग के मुकाबले 5.62 लाख रुपये का मुआवजा देने का बीमा कंपनी को आदेश दिया गयासर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अपने निर्णय में बताया कि सड़क दुर्घटना पीड़ित इंसान सिर्फ इलाज खर्चनौकरी की कमी या विकलांगता के अलावा भी अन्य कष्ट झेलता हैजिसके लिए वह मुआवजे का हक़दार हैअन्य कष्टों में सर्वोच्च न्यायालय ने विकलांगता के कारण विवाह की कम हुई संभावनाओं  मानसिक पीड़ा को जोड़ाज्ञातव्य हो कि वर्ष 1996 में संजय बाथम सड़क दुघर्टना में घायल होकर लकवाग्रस्त हो गए थेमई 1996 में संजय बाथम ने वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण में याचिका दाखिल कर 4.20 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थीजबकि वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण ने मात्र 25 हजार मुआवजा दिलाया थाइसमें 5 हजार कमाई बंद होने के, 10 हजार इलाज खर्च के, 5 हजार दुर्घटना की पीड़ा के और 5 हजार विशेष आहार के मद में थेसंजय बाथम ने वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण के निर्णय के विरुद्ध मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थीमध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुआवजे राशि को बढ़ाकर ढाई लाख रूपये कर दी थीसंजय बाथम ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कीसर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में पीड़ित संजय बाथम द्वारा मांगी गई मुआवजे राशि (4.20 लाख रुपयेको बढ़ाते हुए इसे 5.62 लाख रुपये कर दियाजिसमें पीड़ित की कमाई बंद होने के लिए 162000 रुपयेभविष्य में इलाज पर होने वाले खर्च के लिए 2 लाख रुपये और विकलांगता के कारण विवाह की कम हुई संभावनाओं  मानसिक पीड़ा के लिए 2 लाख रुपये और मुआवजे में जोड़ दिए.
विदेशी कंपनियां भी भारतीय उपभोक्ता अदालतों के प्रति जवाबदेहसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बताया कि सेवा में खामी रहने पर विदेशी कंपनियां भी भारतीय उपभोक्ता अदालतों के प्रति जवाबदेह हैं. 19 सितंबर 2011 को दिए इस निर्णय के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (NCDRC: National Consumers Disputes Redressal Commission, एनसीडीआरसीद्वारा लेबनान की अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज पर मुंबई की एक कंपनी यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स को 71615.75 डॉलर जुर्माना देने के निर्णय को सही ठहरायासर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की पीठ ने अपने निर्णय में बताया कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आने वाले ग्राहक सेवा में खामी का मामला उपभोक्ता अदालतों और नियमित अदालतों में लेकर जा सकते हैंपीठ ने लेबनान की अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज की एनसीडीआरसी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका ख़ारिज कर दी.ज्ञातव्य हो कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (NCDRC: National Consumers Disputes Redressal Commission, एनसीडीआरसीने ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज को यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स को 71615.75 डॉलर जुर्माना देने के अलावा एक लाख रुपये का अतिरिक्त जुर्माना देने का निर्देश दिया थाट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज ने यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स द्वारा कपड़ों की एक खेप को अगस्त 1992 में स्पेन में गलत पते पर डिलीवर कर दी थी.इसी संबंध में यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स ने ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज पर मुकदमा दायर किया थाजिस पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने अपना निर्णय दिया थासर्वोच्च न्यायालय में ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग के निर्णय के विरोध में याचिका दायर की थी और तर्क दिया कि वारसा और हेग संधि के तहत भारतीय उपभोक्ता अदालतों को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ निर्णय करने का अधिकार नहीं है.
संदिग्ध निष्ठा वाले न्यायाधीशों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति प्रदान की जाएसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने 13 सितंबर 2011 को संदिग्ध निष्ठा से संबंधित न्यायाधीशों के मामले में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्ति का निर्णय दियासर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस निर्णय में यह भी बताया कि संदिग्ध निष्ठा वाले न्यायाधीशों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जा सकता हैभले ही उनकी उम्र 50 वर्ष  हुई हो.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएम पांचाल और न्यायमूर्ति एचएल गोखले की पीठ ने तीन न्यायाधीशों आरएस वर्मारोहिल्ला और पीडी गुप्ता की संदिग्ध निष्ठा पर की गई सेवानिवृत्ति को कायम रखते हुए उपरोक्त व्यवस्था दी.
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अपने निर्णय में बताया कि दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवाओं के मूलभूत नियम यह पूर्ण अधिकार देते हैं कि दिल्ली उच्च न्यायालय की सलाह पर ऐसे अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया जाएभले ही उनकी आयु 55 वर्ष से कम क्यों  होसाथ ही पीठ ने यह भी तर्क दिया कि ऐसा कोई भी नियम नहीं है जिसमें किसी अधिकारी को इस आधार पर 55 वर्ष से पहले अनिवार्य सेवानिवृत्ति  दी जाएजबकि उससे जुड़ा संदिग्ध निष्ठा का मामला 50 वर्ष की उम्र में सामने आया हो
दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवा संहिता के एफआर 56 (जेके तहत किसी भी सरकारी कर्मचारी कोजो 35 वर्ष की आयु से पहले नौकरी में शामिल होता है तो उसे 50 वर्ष से पहले अनिवार्य सेवानिवृत्त किया जा सकता हैअन्य मामले में यह सीमा 55 वर्ष की है.
सिर्फ अश्लील और आपत्तिजनक नृत्य प्रतिबंधित होबार और रेस्त्रां डांसर नहींसर्वोच्च न्यायालय 
सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को सिर्फ अश्लील और आपत्तिजनक नृत्य प्रतिबंधित करने  कि बार और रेस्त्रां डांसर को प्रतिबंधित करने हेतु विचार का समय दियासर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीरन्यायमूर्ति एसएस निज्जर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 8 सितंबर 2011 को बार और रेस्त्रां डांसर की आजीविका से संबंधित इस मुद्दे पर सोचने के लिए महाराष्ट्र सरकार को दो सप्ताह का समय दियातीन सदस्यीय खंडपीठ के अनुसार नृत्य को अपने आप में अश्लील नहीं माना जा सकतासाथ ही उसे प्रतिबंधित करने से हजारों नर्तक बेरोजगार हो सकते हैंजो उनको गलियों में उतरने पर मजबूर कर सकता हैअपने तर्क में खंडपीठ ने बताया कि बच्चे नृत्य करते हैंकुछ स्थानों पर युगल भी नृत्य करते हैंडांस फ्लोर भी बने हुए हैंयानी सिर्फ ऐसा होने से वह अश्लील या आपत्तिजनक नहीं हो जाता.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीरन्यायमूर्ति एसएस निज्जर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने महाराष्ट्र सरकार को बंबई पुलिस कानून की धारा 33 और 34 में कुछ ऐसे बदलाव करने का सुझाव दिया जिससे सिर्फ नृत्य के अश्लील और आपत्तिजनक प्रारूप को प्रतिबंधित किया जाए.
ज्ञातव्य हो कि बंबई उच्च न्यायालय ने बार और रेस्त्राओं में होने वाले डांस शो पर प्रतिबंध लगाने वाले मुंबई पुलिस के फैसले को वर्ष 2006 में निरस्त कर दिया थामुंबई पुलिस ने डांस शो पर इस आधार पर प्रतिबंध लगाया था कि बार और रेस्त्रांओं में नृत्य अश्लील और उकसाने वाला होता है तथा कई लड़कियां जिस्मफरोशी में संलिप्त हो जाती हैंसर्वोच्च न्यायालय में महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के निर्णय के विरुद्ध याचिका दायर की थी.
सर्वोच्च न्यायालय का सरकारी जमीन पर बने निजी अस्पतालों को गरीबों का मुफ्त इलाज करने का निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अनुदान प्राप्त सरकारी जमीन पर बने निजी अस्पतालों को गरीबों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने का निर्देश दियायह निर्देश सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एके पटनायक की खंडपीठ द्वारा 1 सितम्बर 2011 को दिया गयाखंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि निजी अस्पतालों को अपने बाह्य रोगी विभाग (ओपीडीकी क्षमता का 25 प्रतिशत  भर्ती किए जाने वाले मरीजों के लिए रखे गए बिस्तरों का 10 प्रतिशत ग़रीबों के मुफ्त इलाज के लिए आरक्षित रखेंखंडपीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 22 मार्च 2007 के निर्णय के खिलाफ 10 निजी अस्पतालों की याचिका खारिज करते हुए यह निर्देश दियादिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को धर्मशिला कैंसर अस्पतालदीपक मेमोरियलभगवतीबालाजीजयपुर गोल्डनएस्कॉर्टविद्यासागर (विमहेंसऔर सुंदर लाल जैन अस्पताल ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.अदालत ने न्यूनतम मजदूरी को गरीबी का आधार बनाया हैअगस्त 2011 तक दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी 6422 रुपए प्रतिमाह हैइस राशि से कम पारिवारिक आय वाले लोग मुफ्त इलाज के हकदार होंगेराष्ट्रीय राजधानी में ऐसे 37 अस्पताल हैं जिन्हें सरकार ने रियायती दर पर जमीन आवंटित की हैइनमें से 27 अस्पताल गरीबों का मुफ्त इलाज कर रहे हैंविदित हो कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सस्ती दर पर भूखंड प्राप्त करने वाले निजी अस्पतालों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों का मुफ्त इलाज करने का आदेश 22 मार्च 2007 के अपने निर्णय में दिया थादिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि गरीब रोगियों की भर्तीबिस्तरदवा,इलाज सर्जरी नर्सिंग खाने पीने की चीजें निःशुल्क मुहैया कराई जाए.
ज्ञातव्य है कि उल्फा के फरार कमांडर इन चीफ परेश बरुआ स्वायत्तता के मुद्दे को शामिल किए बिना अभी भी सरकार के साथ बातचीत का विरोध कर रहे हैं.
किसानों की जमीन का भूमि अधिग्रहण बाजार मूल्य के आधार परसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण पर एक महत्वपूर्ण निर्णय में 25 अगस्त 2011 को बताया कि किसानों की जमीन का भूमि अधिग्रहण बाजार मूल्य के आधार पर किया जाना चाहिएसर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय के पीछे तर्क दिया कि अनिवार्य रूप से ली जा रही जमीन के बदले में भूस्वामी अधिकतम मूल्य के हकदार हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने पंजाब के कुछ भू स्वामियों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह व्यवस्था दीपीठ ने अपने निर्णय में पंजाब सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन का आधार मूल्य 2.75 लाख प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 4.09 लाख प्रति हेक्टेयर भी कर दिया.
ज्ञातव्य हो कि अंबाला चंडीगढ़ राजमार्ग पर एक औद्योगिक संयंत्र स्थापित करने के लिए पंजाब सरकार ने किसानों की जमीनें ली थीं और उन्हें बाजार मूल्य के बजाय सरकारी दर पर भुगतान किया थाइसी के विरोध में कुछ भू स्वामियों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.
ओबीसी छात्रों को सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित न्यूनतम पात्रता अंकों से अधिकतम दस फीसदी की छूट
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों प्रवेश प्रक्रिया में ओबीसी छात्रों को सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित न्यूनतम पात्रता अंकों से अधिकतम दस फीसदी अंकों की ही छूट मिल सकती हैसर्वोच्च न्यायालय का 18 अगस्त 2011 को आया यह निर्णय सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लागू होना है.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रविन्द्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि ओबीसी छात्रों को प्रवेश सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट आफ अंक से दस फीसदी कम अंक पर नहींबल्कि सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंक से दस फीसदी कम अंकों पर दिया जाना है.
ज्ञातव्य हो कि ओबीसी को प्रवेश में दी जाने वाली दस फीसदी अंकों की छूट सामान्य वर्ग के अंतिम कट आफ अंक से मानी जाए या न्यूनतम पात्रता अंक से पर विवाद थान्यायमूर्ति आरवी रविन्द्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कट आफ मार्क्स शब्द का मतलब स्पष्ट करते हुए बताया कि इसका मतलब सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंकों से हैयानी अगर सामान्य वर्ग के लिए प्रवेश के न्यूनतम पात्रता अंक 50 हैं तो ओबीसी के लिए यह मानक 45 अंक हो सकता है.
संविधान के उपर संसद का प्रभुत्व नहींसर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में संविधान को संसद से ऊपर का दर्जा दियानिर्णय में पीठ ने यह बताया कि हमारे संविधान में अवधारणा के रूप में कानून के शासन की कोई जगह नहीं है बल्कि इसे हमारे संविधान की मूलभूत विशेषता के रूप में रेखांकित किया गया है जिसे संसद द्वारा भी निरस्त या नष्ट नहीं किया जा सकता और वास्तव में यह इससे बंधी है.सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडियान्यायमूर्ति मुकुंदकम शर्मान्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णनन्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की पीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय अगस्त 2011 के दूसरे सप्ताह में दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने निर्णय में केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय का उदाहरण देते हुए बताया कि कानून का शासन मूलभूत ढांचे के सिद्धांत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक हैकानून का शासन संसद की प्रधानता की पुष्टि करता है लेकिन साथ ही इसे संविधान के ऊपर प्रभुत्व देने से इंकार करता है.संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि कानून का शासन संसद की विधायी शक्तियों पर एक अंतर्निहित परिसीमा हैपीठ ने हालांकि संवैधानिक अदालतों को कानून के शासन के सिद्धांत को पूर्ण व्यवस्था मानने के प्रति आगाह किया और बताया कि सिद्धांत को दुर्लभ मामलों में उन कानूनों को खत्म के लिए क्रियान्वित किया जाना चाहिए जो दमनकारी हैं और जो हमारे संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हैं
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने निर्णय में यह भी बताया कि कोई भी कानूनजो किसी व्यक्ति को निजी स्वार्थ से उसकी निजी संपत्ति से वंचित करेवह गैर कानूनी और अनुचित होगा और यह कानून के शासन को कमजोर करता है तथा इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है.

सूचना का अधिकार कानून के तहत छात्रों को अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देखने का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सूचना के अधिकार कानून (RTI: Right to Information Act, आरटीआइके तहत छात्रों को अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देखने का अधिकार दिया. 9 अगस्त 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में बताया कि जांची जा चुकी उत्तर पुस्तिकाएं आरटीआइ कानून में दी गई सूचना की परिभाषा के तहत आती हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवीन्द्रन  न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 5 फरवरी 2009 को दिए गए फैसले को सही ठहराते हुए यह निर्णय दियासर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद सभी तरह की शैक्षिक या प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले विद्यार्थियों को आरटीआइ के तहत अपनी जांची जा चुकी उत्तर पुस्तिकाएं देखने और उसकी फोटोकॉपी करवाने का अधिकार होगा.
ज्ञातव्य हो कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में बताया था कि छात्र आरटीआइ के तहत अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देख सकते हैंकलकत्ता उच्च न्यायालय ने साथ में यह भी टिप्पणी की थी कि जब मतदाताओं को उम्मीदवार का बायोडाटा जानने का अधिकार है तो छात्रों को तो अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देखने का उससे ज्यादा अधिकार है.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस फैसले को सीबीएसईवेस्ट बंगाल बोर्ड आफ सेकेन्ड्री एजूकेशनइंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउंटेंट आफ इंडियाकलकत्ता विश्वविद्यालयवेस्ट बेंगाल काउंसिल आफ हायर सेकेन्ड्री एजूकेशनचेयरमैन वेस्ट बंगाल सेंट्रल स्कूल सर्विस कमीशनअसम सर्विस पब्लिक सर्विस कमीशन बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
सर्वोच्च न्यायालय सुरक्षित फैसलों का ब्योरा सार्वजनिक करेकेंद्रीय सूचना आयोग 
केंद्रीय सूचना आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को उन सभी न्यायायिक मामलों का ब्योरा को सार्वजनिक करने का निर्देश दियाजिसके फैसले सुरक्षित रखे गए हैंकेंद्रीय सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा ने फैसले सुरक्षित रखे गए मामलों का रिकार्ड रखने और इसके ब्योरे को सार्वजनिक करने के लिए समुचित प्रबंध करने का भी निर्देश 4 अगस्त 2011 को दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष जो तर्क रखाउसके अनुसार न्यायालय द्वारा सामान्यतया आदेश सुरक्षित रखे जाने के दो से चार हफ्तों में फैसला सुना दिया जाता हैहालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि ऐसे फैसलों का कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता जहां आदेश लंबे समय तक सुरक्षित रखा गया हो.
सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि ऐसे मामलों का ब्योरा रखने के लिए हर फाइल की समीक्षा करनी पड़ेगी जो एक असंभव सा कार्य हैकेंद्रीय सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा ने सर्वोच्च न्यायालय के तर्कों को खारिज करते हुए ऐसे मामलों की जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दियासाथ ही आदेश के 15 दिनों के भीतर न्यायालय द्वारा इस संबंध में कार्यवाही शुरू किए जाने का निर्देश भी दिया.
ज्ञातव्य हो कि सेवानिवृत कोमोडोर लोकेश के बत्रा ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर उन मामलों की जानकारी चाही थी जिसमें सुनवाई पूरी होने के बाद न्यायाधीशों द्वारा फैसला सुरक्षित रख लिया गया थासर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह की जानकारी उपलब्द्ध कराने को असंभव कार्य बताया था.
निजी अस्पतालों को गरीबों का मुफ्त इलाज करने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ को देखते हुए गरीब मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजने का आदेश दियासाथ ही रियायती दर पर जमीन लेने वाले निजी अस्पतालों को 25 जुलाई 2011 को निर्देश दिया कि वे इन मरीजों का मुफ्त इलाज करें.
ज्ञातव्य हो कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार से रियायती दर पर जमीन लेने वाले निजी अस्पतालों में गरीबों को भर्ती होकर इलाज कराने में दस फीसदी  ओपीडी में 25 फीसदी मरीजों के मुफ्त इलाज का आदेश दिया थाइस निर्णय के विरुद्ध कुछ निजी अस्पतालों ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवीन्द्रन  एके पटनायक की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में निजी अस्पतालों को निर्देश दिया कि वे दस दिन के भीतर गरीबों को इलाज मुहैया कराने की योजना पर दिल्ली सरकार से विचार-विमर्श करें.
केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण नियमों में बदलाव असंवैधानिकसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण नियमों में बदलाव को असंवैधानिक करार दियाआइएएसआइपीएस जैसी अखिल भारतीय सेवाओं में सामान्य तथा आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नियमों में केंद्र सरकार द्वारा फेरबदल संविधान का उल्लंघन है.सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने 20 जुलाई 2011 को अपने आदेश में बताया कि सामान्यअनुसूचित जातिजनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए रोस्टर प्रणाली का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए और निर्धारित कोटा सीमा से अधिक आरक्षण अवैध और असंवैधानिक है.ज्ञातव्य हो कि आइपीएस अधिकारी और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार जी श्रीनिवास राव की याचिका पर यह आदेश दिया गयाश्रीनिवास ने गृह राज्य आंध्र प्रदेश के बदले मणिपुर-त्रिपुरा संयुक्त कैडर दिए जाने के केंद्र के 1999 के फैसले को चुनौती दी थीउन्हें 1998 की सिविल सेवा परीक्षा में 95वां रैंक मिलालेकिन पिछड़ा वर्ग के एक अन्य उम्मीदवार को आंध्र प्रदेश कैडर दिया गया था.केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार को आंध्र प्रदेश कैडर दिए जाने पर तर्क दिया कि पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को निर्धारित सीमा के अलावा दो अतिरिक्त आरक्षण दिया गया क्योंकि 1998 में उनका कोटा पूरी तरह नहीं भर सका थासर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के तर्क को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया.
केंद्रपश्चिम बंगाल और गोजमुमो के बीच त्रिपक्षीय समझौते से गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन बना
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जीकेंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम और गोरखा जन मुक्ति मोर्चा (GJM: Gorkha Janmukti Morcha, गोजमुमोके नेता विमल गुरुंग के बीच पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के सुकना स्थित पिंटेल गांव में 18 जुलाई 2011 को हुए त्रिपक्षीय समझौते के तहत गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (GTA: Gorkhaland Territorial Administration) अस्तित्व में आया.केंद्र सरकार की राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA: Cabinet Committee on Political Affairs, सीसीपीएने 18 जुलाई 2011 को नई दिल्ली में गोरखा आंदोलनकारियों के साथ हो रहे त्रिपक्षीय समझौते  गोरखा क्षेत्रीय प्रशासन (GTA: Gorkhaland Territorial Administration) के प्रस्ताव को मंजूरी दी.राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA: Cabinet Committee on Political Affairs, सीसीपीएकी बैठक के बाद गृहमंत्री पी चिदंबरम पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के सुकना स्थित पिंटेल गांव गएपिंटेल गांव में हजारों गोरखा और पहाड़ी निवासियों की मौजूदगी में त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (GTA: Gorkhaland Territorial Administration) की स्थापना हेतु हुए त्रिपक्षीय समझौते पर गोरखा जन मुक्ति मोर्चा (GJM: Gorkha Janmukti Morcha, गोजमुमोकी ओर से रोशन गिरिकेंद्र के प्रतिनिधि केके पाठक और पश्चिम बंगाल राज्य के गृह सचिव जीडी गौतम ने हस्ताक्षर किए.
आरटीआइ कानून के तहत मांगी गई जानकारी देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय बाध्यकेंद्रीय सूचना आयोग 
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) ने मई 2011 के तीसरे सप्ताह में निर्णय दिया कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के तहत जानकारी देने से मना नहीं कर सकता हैकेंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के मुताबिक सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के तहत सूचना देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय बाध्य हैचाहे आवेदक के पास अदालत के नियमों के तहत सूचना पाने के अन्य विकल्प क्यों  हों.
ज्ञातव्य हो कि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने व्यवस्था दी थी कि यदि किसी संगठन में सूचना मुहैया कराने के लिए कोई कानून और नियम है तो सूचना मांगने वाले को उनका उपयोग करना चाहिए कि सूचना का अधिकार अधिनियम कापूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने अपने निर्णय में यह बताया था कि सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI: Right to Information Act) की धारा 22 के अनुसारवर्तमान कानूनों पर पारदर्शी आरटीआइ कानून तब ही प्रभावी होगा जब दोनों कानून के बीच भिन्नता हो.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अपनी अपील में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) को यह बताया था कि उसके नियमों के तहत न्यायिक प्रक्रिया और दस्तावेजों के बारे में सूचना मुहैया कराने के लिए पहले से ही व्यवस्था हैऐसे में सूचना का अधिकार कानून (RTI: Right to Information Act) के तहत जानकारी नहीं दी जा सकती क्योंकि दोनों कानून में कोई भिन्नता नहीं हैपूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला सर्वोच्च न्यायालय की इस दलील से सहमत थेलेकिन वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी सर्वोच्च न्यायालय के इस तर्क से सहमत नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की दलीलों को खारिज करते हुए मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने निर्णय दिया कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के तहत मांगी गई सूचना देने से इंकार नहीं कर सकतानिर्णय में यह बताया गया कि सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के अस्तित्व में आने के पहले से ही सूचना मुहैया कराने के कई उपाय हों तो भी नागरिक सूचना हासिल करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI: Right to Information Act) के प्रावधानों का उपयोग कर सकता हैकेंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के निर्णय में यह बताया गया कि उस व्यवस्था का चयन करना नागरिक का विशेषाधिकार है जिसके तहत उसे सूचना चाहिए.
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि जिस तरह सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के नियमों को न्यायालय ने लागू किया है और उन्हें रद्द नहीं किया जा सकताउसी तरह सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI: Right to Information Act) संसद ने पारित किया है और उसे निलंबित नहीं किया जा सकता. ऑनर किलिंग सर्वोच्च न्यायालय की नजर में दुर्लभतम अपराध
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू  न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने महत्वपूर्ण फैसला देते हुए इज्जत के लिए हत्या यानी ऑनर किलिंग (honour killings) को राष्ट्र पर कलंक बतायायह महत्वपूर्ण निर्णय अपनी ही बेटी की हत्या करने वाले दिल्ली के भगवान दास की याचिका खारिज करते हुए 9 मई 2011 को सुनाया गया.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू  न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भगवान दास को हत्या के जुर्म में सुनाई गई उम्र कैद सजा को सही ठहरायासाथ ही पीठ ने अपने इस फैसले की प्रति सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों के मुख्य सचिवगृह सचिव  पुलिस महानिदेशकों को भेजने का निर्देश दियाताकि ये लोग फैसले की प्रति सभी सत्र अदालतों के जजों और एसएसपी  एसपी दफ्तरों में सूचनार्थ भेज सकें.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू  न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने बताया कि हमारे देश में विभिन्न स्थानों में ऑनर किलिंग (honour killings) आम हो गई हैविशेष तौर पर उत्तर प्रदेशहरियाणाराजस्थान आदि जगहों परन्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने उल्लेख किया कि ऑनर किलिंग (honour killings) में कुछ भी ऑनरेबल (सम्मानजनकनहीं हैयह हठी सामंती मानसिकता के लोगों द्वारा की जाने वाली क्रूर हत्याएं हैंअगर किसी को अपनी बेटी या रिश्तेदार का व्यवहार पसंद नहीं आता तो वह ज्यादा से ज्यादा उसका सामाजिक बहिष्कार कर सकता हैलेकिन वह कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता.
अपराध से जुड़े किसी भी स्थान पर मुकदमा दायर करना कानूनी हकसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सथाशिवम  न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पुलिस थाना  न्यायालय सीमा विवाद समाप्त करते हुए यह बताया कि अगर कोई अपराध एक स्थान से शुरू होकर लगातार दूसरे स्थान तक जारी रहता है तो उसका मुकदमा घटना से जुड़े किसी भी स्थान पर चलाया जा सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सथाशिवम  न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने 11 अप्रैल 2011 को सुनीता कुमारी कश्यप बनाम बिहार सरकार की दायर याचिका पर निर्णय दिया और पटना उच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त कर दियाज्ञातव्य हो कि पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) ने दहेज प्रताड़ना की शिकार सुनीता कुमारी कश्यप द्वारा उसके पति के खिलाफ दहेज का मुकदमा क्षेत्राधिकार के आधार पर निरस्त कर दिया था.
दहेज हत्या के दोषियों के लिए न्यूनतम सजा उम्रकैदसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दहेज हत्या के दोषियों के लिए उम्रकैद को न्यूनतम सजा मानानिर्णय में बताया गया कि ऐसे जघन्य अपराध के लिए उम्रकैद से कम सजा नहीं दी जा सकती हैसर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने यह निर्णय दियासर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए निर्णय में बताया कि अनुच्छेद 304 (बीके तहत दोष साबित हो चुका हैअतः दायर क्षमा याचिका जिसमें कैलाशू उर्फ कैलाशवती के बुजुर्ग होने और इस घटना के 1996 में होने का तर्क सजा से बचने के लिए नाकाफी है.  ज्ञातव्य हो कि उत्तराखंड के रुड़की जिले में 17 फरवरी 1996 को रेनू को दहेज विशेष रूप सेटेलीविजन या कूलर और अन्य सामानों की मांग पूरी  होने पर जलाकर मार डालने के आरोप में मुकेश भटनागर (पति), कैलाशू उर्फ कैलाशवती (सासऔर राजेश भटनागर को निचली अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा दी गई थीइस तरह की रक्त जांच के खिलाफ प्रमाण के बावजूद भारत में 15 लाख तपेदिक (टीबीमरीजों की जांच सिरो-डायग्नोस्टिक किट से की जाती हैइस तरह की जांच पर मरीजों का लगभग 75 करोड़ रुपए वार्षिक  खर्च होता है
सुनीता कुमारी कश्यप ने अपने पति के खिलाफ दहेज का मुकदमा गया में दायर किया थासुनीता के पति ने गया अदालत की कार्यवाही को क्षेत्राधिकार के आधार पर चुनौती दी थीउसका तर्क था कि मुकदमा तो रांची में चल सकता है क्योंकि घटना वहां की हैपटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) ने उसकी दलील स्वीकार करते हुए गया की अदालत में चल रहा मुकदमा निरस्त कर दिया था
हज यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी को दस वर्षों में समाप्त किया जाएसर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने हज यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी को दस वर्षों में समाप्त करने का आदेश दियासर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि धार्मिक स्थलों पर जाने वाले लोगों को इस तरह की सब्सिडी देना अल्पसंख्यकों को लुभाने के समान हैसाथ ही न्यायालय ने हज यात्रा के साथ भेजे जाने वाले सद्भावना प्रतिनिधिमंडल को भी सिर्फ दो सदस्यों तक सीमित करने का आदेश दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने 8 मई 2012 को हज यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी से संबंधित याचिकाओं पर अंतरिम आदेश जारी कियापीठ ने केंद्र सरकार से 11000 हज यात्रियों के विशेष कोटे का आधार और ब्योरा मांगाजबकि हज कमेटी से हज यात्रियों के चयन का तरीका पूछा गयापीठ ने अपने निर्णय में पवित्र कुरान का भी तर्क दिया जिसमें बताया गया है कि हज व्यक्ति को अपने खर्च पर ही करना चाहिए
न्यायाधीशों के विरुद्ध शिकायतों को सार्वजनिक किया जाएकेंद्रीय सूचना आयोग
केंद्रीय सूचना आयोग ने 29 अप्रैल 2012 को कानून मंत्रालय को निर्देश दिया कि न्यायाधीशों के विरुद्ध शिकायतों को सार्वजनिक किया जाएसाथ ही शिकायतों से संबंधी उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को भेजे गए पत्रों को भी सार्वजनिक किया जाएकेंद्रीय सूचना आयोग ने आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता को एक वर्ष पूर्व की तारीख से ऐसे शिकायत पत्रों को उपलब्ध कराया जाएआदेश में यह भी बताया गया कि इस संबंध में अधिकारियों से तीन वर्ष तक रिकार्ड पर नजर रखने और किसी भी आवेदक को इसे देने का प्रबंध किया जाएसूचना आयुक्त सुषमा सिंह ने कानून मंत्रालय को इस तरह से रिकार्ड रखने का निर्देश भी दिया कि आवेदकों के अनुरोध पर इन्हें दिया जा सकेज्ञातव्य हो कि कानून मंत्रालय ने इससे पूर्व स्पष्ट किया था कि इस तरह की शिकायतों की प्रति नहीं दी जा सकती क्योंकि इन शिकायतों को भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित मामलों में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को भेजा जाता हैसाथ ही मंत्रालय के अधिकारी इन शिकायतों का कोई रिकार्ड नहीं रखते.
सरकारी नौकरी में अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मियों को प्रोन्नति में आरक्षण असंवैधानिक
सरकारी नौकरी में अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मियों को प्रोन्नति में आरक्षण और परिणामी वरिष्ठता का लाभ असंवैधानिक हैसर्वोच्च न्यायालय ने मायावती सरकार द्वारा इस संबंध में किए गए कानून संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए इसे 27 अप्रैल 2012 को निरस्त कर दियाहालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जो लोग संशोधित नियम का लाभ प्राप्त कर प्रोन्नति पा चुके हैं उन्हें छेड़ा नहीं जाएगासर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी  न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा 4 जनवरी 2011 को दिए गए निर्णय को सही ठहरायाइलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने वाली उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस (रिजर्वेशन फार एससी एसटी और ओबीसीअधिनियम 1994 की धारा 3 (7) को असंवैधानिक बताया थाहालांकि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट सीनियरिटी थर्ड एमेंडमेंट रूल 8 (को संवैधानिक ठहराने वाले निर्णय को निरस्त कर दिया.ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार ने वर्ष 2007 में यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट सीनियरिटी थर्ड एमेंडमेंट रूल में धारा 8 (जोड़ी थीइसमें अनुसूचित जाति-जनजाति को प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता का प्रावधान था.

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