Monday, 20 August 2012

part 1


NATIONAL ISSUE  may2011 - till date   


गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) गठित, सभी सदस्यों ने शपथ ग्रहण की
पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के 45 निर्वाचित सदस्यों को 4 अगस्त 2012 को दार्जिलिंग में शपथ दिलाई गई. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन ने गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष विमल गुरूंग को गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में शपथ दिलाई, जबकि राज्य के गृह सचिव बासुदेव बनर्जी ने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के अन्य निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाई. इस अवसर पर पांच मनोनीत सदस्यों ने भी शपथ ली. गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) का शासन 50 सदस्यों की निकाय द्वारा किया जाना है. जिसकी 45 सीटों पर चुनाव हुए और 5 सीटों पर सदस्यों को मनोनित किया गया. इन पांच सदस्यों में से तीन सदस्यों को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा तथा दो सदस्यों को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा मनोनीत किया गया.
गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के चुनाव
50
सदस्यीय गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) की 45 सीटों के लिए 29 जुलाई 2012 को चुनाव संपन्न हुए और 3 अगस्त 2012 को मतगणना हुई. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने तृणमूल कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के चुनाव मैदान से हटने के बाद 28 सीटें पहले ही निर्विरोध जीत ली थी.
गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए
केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बीच दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र को लेकर प्रस्तावित त्रिपक्षीय समझौते पर 18 जुलाई 2011  को हस्ताक्षर किए गए थे. समझौते के तहत एक नई स्वायत्तशासी, निर्वाचित पहाड़ी परिषद, गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन का गठन किया गया. इस नई परिषद ने 1980 के दशक के अंतिम दिनों में गठित दार्जीलिंग गोरखा पवर्तीय परिषद का स्थान लिया है और इसके पास इससे अधिक अधिकार हैं.
गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीएको राष्ट्रपति कि मंजूरी
भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 7 मार्च 2012 को पश्चिम बंगाल के प्रस्तावित गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीएके बिल पर अपनी मंजूरी दे दी. पश्चिम बंगाल कि सरकार ने 14 मार्च 2012 को गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के लिए एक अधिसूचना जारी की. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता और पश्चिम बंगाल कि सरकार के बीच 24 मार्च 2012 को हुई बैठक में गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के मतदान की तिथि 2012 के जुन या जुलाई महीने के अन्त में निर्धारित हुई. पश्चिम बंगाल कि सरकार ने 26 मई 2012 को गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के लिए एक सूची जारी की, जिसमें 45 निर्वाचन क्षेत्र शामिल किए गए.
राज्यसभा ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहान्स) विधेयक-2010 पारित
राज्यसभा ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहान्स) विधेयक 2010 (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences Bill-2010, NIMHANS) 13 अगस्त 2012 को पारित कर दिया. इस विधेयक में बंगलौर स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहंस) को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान का दर्जा देने संबंधी प्रावधान है. इस विधेयक के मुख्य रूप से निम्नलिखित लाभ हैं.

मंजूरी से देश में मनोचिकित्सकों की संख्या बढ़ाने में मदद.
नर्स सहित अन्य स्टाफ की कमी को पूरा करने मदद.
राष्ट्रीय दर्जा मिलने से यह एक वैधानिक और स्वायत्त संस्था होगी.
निमहंस अपनी जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रम, शिक्षकों और सीटों की संख्या तय कर सकेगा.

इस विधेयक में बंगलौर के इस अस्पताल को राष्ट्रीय महत्त्व का एक संस्थान घोषित किया गया. देश में 11500 मनोचिकित्सकों की जरूरत है, लेकिन उनकी उपलब्धता केवल 3800 है. इस तरह से मनोचिकित्सकों की संख्या में 68 प्रतिशत  की कमी है
प्रधानमंत्री ने महत्वपूर्ण परियोजनाओं हेतु सरकारी भूमि हस्तांतरण नीति में छूट प्रदान की
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सरकारी स्वामित्व वाली भूमि के लिए सरकारी भूमि हस्तांतरण नीति में छूट की मंजूरी 2 अगस्त 2012 को प्रदान की.जिससे ढांचागत परियोजनाओं को प्रक्रियागत देरी का सामना करना पड़े. यह छूट कुछ विशिष्ट श्रेणी की परियोजनाओं के लिए प्रदान की गई है. यह योजनाएं इस प्रकार हैं.

मंत्रालयों से वैधानिक प्राधिकरणों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को भूमि के हस्तांतरण के सभी मामलों को अनुमति दी जाएगी, बशर्ते भारत सरकार के सामान्य नियमों की अपेक्षाएं पूरी होती हों.
लीज़ या किराए या लाइसेंस पर छूट लेने वाले को भूमि हस्तांतरण के सभी मामले जो सार्वजनिक निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति के द्वारा आकलित किए गए हों तथा वित्त मंत्रालय या संबंधित मंत्रालयों या मंत्रिमंडल (जैसा भी मामला हो) के द्वारा परियोजना के मूल्य के आधार पर स्वीकार की गई हों.
रेलवे संशोधन अधिनियम 2005 के प्रावधानों और उसके बाद इसके तहत बनाए गए नियमों तथा रेल मंत्रालय और भारत सरकार की प्रचलित नीतियों तथा दिशा निर्देशों के अनुरूप रेल भूमि विकास प्राधिकरण द्वारा रेल भूमि का विकास तथा इस्तेमाल.

विदित हो कि वर्ष 2011 के प्रारंभ में केवल उन मामलों को छोड़कर सरकारी स्वामित्व वाली भूमि के सभी तरह के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जहां भूमि एक सरकारी विभाग से दूसरे सरकारी विभाग को दी जानी थी. यदि किसी विभाग को कोई परियोजना लागू करनी हो जिसके लिए भूमि को लीज़, लाइसेंस या किराय पर लेना है तो ऐसे मामले में उसे मंत्रिमंडल की विशेष मंजूरी लेनी होती थी.
इसके कारण ढांचागत परियोजनाओं खासतौर से सार्वजनिक निजी भागीदारी वाली परियोजनाओं के लिए अनुमति देने में देरी हो रही थी. सड़क, रेल, बंदरगाह, नागरिक उड्यन और मेट्रो जैसी सभी सार्वजनिक निजी भागीदारी वाली ढांचागत परियोजनाओं को भूमि के हस्तांतरण की जरूरत होती है, क्योंकि ऐसी सभी परियोजनाएं प्राय: सरकारी भूमि पर बनाई जाती हैं. लीज़ पर लेने या देने के बाद भी भूमि पर सरकार का स्वामित्व जारी रहता है. प्रत्येक सार्वजनिक निजी भागीदारी वाली परियोजना के लिए मंत्रिमंडल की अनुमति लेने की प्रक्रिया में कुछ महीनों का समय लग जाता है.
विदित हो कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहान्स) दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान है. इसमें 852 बिस्तर हैं
कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने की समय सीमा समाप्त
सरकारी सेवा के दौरान मृत्यु हो जाने या चिकित्सा आधार पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी लेने हेतु आवेदन पत्र जमा करने की अधिकतम 3 वर्ष की समयसीमा की शर्त समाप्त कर दी गई. केंद्र सरकार ने यह निर्णय कानून और न्याय मंत्रालय तथा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से विचार-विमर्श के बाद लिया. यह निर्देश 25 जुलाई 2012 को जारी किया गया. इसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारी के परिवार को तुरंत सहायता उपलब्ध कराना तथा उसकी आर्थिक परेशानियों को दूर करना है. निर्देश जारी होने के साथ ही अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए आवेदन अब कभी भी किया जा सकता है.

जारी विज्ञप्ति के अनुसार यदि अनुकंपा के लिए देर से आवेदन दिए जाते हैं तो उस पर अनुमति संबंधी निर्णय संबंधित विभाग के सचिव ही करेंगे. इसके लिए अनुमति देने से पूर्व वह इस बात की जांच करेंगे कि देरी से आवेदन क्यों दिए गए और उस परिवार को क्या नौकरी की आवश्यकता है.

विदित हो कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2003 में नियम में बदलाव करते हुए अनुकंपा पर नौकरी लेने हेतु आवेदन जमा करने की अधिकतम समयसीमा 3 वर्ष कर दी थी. इसका कारण यह दिया गया था कि यदि किसी की असमय मृत्यु होती है तो उस परिवार को जरूरत तुरंत पड़ती है. यदि तीन वर्ष तक दावे नहीं किए जाते हैं तो उस परिवार को नौकरी की जरूरत नहीं है.
केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने फौजदारी कानून संशोधन विधेयक-2012 को संसद में पेश करने की मंजूरी दी
केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने फौजदारी कानून संशोधन विधेयक 2012 (Criminal Law (Amendment)  Bill 2012) को संसद में पेश करने की मंजूरी प्रदान कीइसके अंतर्गत यौन दुर्व्यवहार के अपराध का दायरा बढ़ा कर बलात्कार सहित सभी यौन अपराधों के लिए और कड़ी सजा की व्यवस्था की गई. विधेयक के तहत बलात्कार शब्द की जगह यौन दुर्व्यवहार को प्रयोग किया जाएगा. संशोधन में इस परिभाषा को और व्यापक बनाया गया. यौन दुर्व्यवहार का पीड़ित पुरूष होने पर भी यही कानून लागू करने का प्रावधान किया गया. यौन दुर्व्यवहार के लिए कम से कम सात वर्ष और उम्रकैद तक की सजा देने का कती है और साथ ही जुर्माना भी हो सकता है.
पीपीपी परियोजनाओं को पूरा करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार का निगरानी तंत्र स्थापित करने का निर्णय
सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने निगरानी तंत्र स्थापित करने का निर्णय लिया. यह निर्णय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडलीय बैठक में 12 जुलाई 2012 को लिया गया.

इसके तहत दो स्तरीय प्रणाली-परियोजना निगरानी इकाई (प्रोजेक्ट मानिटरिंग यूनिट, पीएमयू) तथा प्रगति समीक्षा इकाई (परफॉरमेंस रिव्यू यूनिट, पीआरयू) होगी. परियोजना निगरानी इकाई का कार्य परियोजना प्राधिकरण स्तर पर सार्वजनिक निजी भागीदारी परियोजना के कामकाज पर नजर रखना और प्रगति समीक्षा इकाई का कार्य मंत्रालय या राज्य सरकार के स्तर पर इसके क्रियान्वयन पर निगरानी करना है.
विदित हो कि केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा योजना आयोग के इस प्रस्ताव को ऐसे समय मंजूरी दी गई है जब विभिन्न सरकारी विभागों की पीपीपी परियोजनाओं पर निर्भरता बढ़ी है.
केंद्र सरकार द्वारा तपेदिक (टीबी) रोग की पहचान हेतु रक्त जांच की आयातित एलिसा किट पर प्रतिबंध
केंद्र सरकार ने अस्पतालों में तपेदिक (टीबी) रोग की पहचान के लिए रक्त जांच की आयातित एलिसा किट पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसकी जानकारी 20 जून 2012 को दी गई थी. इस बारे में गठित विशेषज्ञ दल की जांच-पड़ताल के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिरो-डायग्नोस्टिक किट के आयात पर प्रतिबंध लगाया क्योंकि इसकी जांच में कमियां पाई गई और इससे रोग की सही-सही पहचान नहीं हो पाती.
 
एलिसा किट के इस्तेमाल से मानवीय जीवन को खतरा उत्पन्न हो सकता है.
विदित हो कि एलिसा किट्स फ्रांस और ब्रिटेन से आयात की जाती हैं. इन देशों में तपेदिक मरीजों के संदर्भ में एलिसा किट का प्रयोग नहीं होता.
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी तपेदिक की पहचान के लिए रक्त जांच पर तुरंत प्रतिबंध लगा ने की बात कही थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विशेषकर यह रोक निजी अस्पतालों में की गई रक्त जांच पर लगाने की वकालत की.
दहेज हत्या के दोषियों के लिए न्यूनतम सजा उम्रकैद: सर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दहेज हत्या के दोषियों के लिए उम्रकैद को न्यूनतम सजा माना. निर्णय में बताया गया कि ऐसे जघन्य अपराध के लिए उम्रकैद से कम सजा नहीं दी जा सकती है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए निर्णय में बताया कि अनुच्छेद 304 (बी) के तहत दोष साबित हो चुका है. अतः दायर क्षमा याचिका जिसमें कैलाशू उर्फ कैलाशवती के बुजुर्ग होने और इस घटना के 1996 में होने का तर्क सजा से बचने के लिए नाकाफी है.  ज्ञातव्य हो कि उत्तराखंड के रुड़की जिले में 17 फरवरी 1996 को रेनू को दहेज विशेष रूप से, टेलीविजन या कूलर और अन्य सामानों की मांग पूरी होने पर जलाकर मार डालने के आरोप में मुकेश भटनागर (पति), कैलाशू उर्फ कैलाशवती (सास) और राजेश भटनागर को निचली अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा दी गई थी. इस तरह की रक्त जांच के खिलाफ प्रमाण के बावजूद भारत में 15 लाख तपेदिक (टीबी) मरीजों की जांच सिरो-डायग्नोस्टिक किट से की जाती है. इस तरह की जांच पर मरीजों का लगभग 75 करोड़ रुपए वार्षिक  खर्च होता है
संपूर्ण स्वच्छता अभियान का नाम बदलकर निर्मल भारत अभियान किया गया
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 7 जून 2012 को हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में संपूर्ण स्वच्छता अभियान का नाम बदलकर निर्मल भारत अभियान कर दिया गया. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में कूड़े-कचरे के प्रबंधन निपटान के लिए प्रत्येक गांव को एकमुश्त वित्तीय मदद देने का निर्णय किया. कूड़े-कचरे के प्रबंधन निपटान के लिए जनसंख्या के आधार पर प्रत्येक गांव को न्यूनतम सात लाख और अधिकतम 20 लाख रुपये की वित्तीय मदद दी जानी है. केंद्र सरकार ने खुले में शौच करने की प्रवृत्ति खत्म करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक शौचालय बनाने पर दी जाने वाली वित्तीय मदद को बढ़ाकर 10 हजार रुपये करने का निर्णय लिया. आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि इंदिरा आवास योजना के मकानों में शौचालय अनिवार्य रूप से बनाए जाएंगे.
अल्पसंख्यक वर्गों के लिए साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण निराधार: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों को दिए गए साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण को निराधार करार दिया. आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी. लॉकर और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने अपने निर्णय में धर्म के आधार पर आरक्षण देने से इन्कार कर दिया. पिछड़ी जाति कल्याण संगठन के अध्यक्ष आरके कृष्णन्नैया द्वारा आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के विरुद्ध दायर की गई याचिका पर न्यायमूर्ति मदन बी. लॉकर और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने अपना निर्णय दिया. खंडपीठ ने तर्क दिया कि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा तैयार प्रथम कार्यालय ज्ञापन के अनुसार राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून की धारा 2(सी) में परिभाषित अल्पसंख्यकों से संबंध रखने वाले शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए साढ़े चार प्रतिशत का आरक्षण तय किया गया जबकि दूसरे कार्यालय ज्ञापन में अल्पसंख्यकों के लिए कोटे में कोटा बना दिया गया, जोकि वैध नहीं है.   ज्ञातव्य हो कि केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पूर्व अल्पसंख्यक वर्गों के लिए ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षित कोटे से साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी. चुनाव आयोग ने इस निर्णय पर चुनाव प्रक्रिया तक रोक लगा दी थी. उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव परिणाम के उपरांत केंद्र सरकार ने इस निर्णय को लागू कर दिया था.
माइक्रो फाइनेंस संस्थान (विकास नियमन) विधेयक, 2012 लोकसभा में पेश
केंद्र सरकार ने माइक्रो फाइनेंस संस्थान (विकास नियमन) विधेयक, 2012 लोकसभा में पेश किया. 22 मई 2012 को पेश किए गए माइक्रो फाइनेंस संस्थान (विकास नियमन) विधेयक के तहत गरीब लोगों को बैंकिंग, बीमा जैसी वित्तीय सेवाएं देने वाली माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं की निगरानी हेतु केंद्र सरकार द्वारा तीन स्तरीय ढांचा तैयार करना है. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गठित वाईएच मालेगाम समिति की रिपोर्ट के आधार पर माइक्रो फाइनेंस संस्थान (विकास नियमन) विधेयक, 2012 तैयार किया गया है. इस विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा तीन स्तरीय ढांचा के अलावा भारतीय रिजर्व बैंक को माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं के लिए प्रोसेसिंग फीस, ब्याज, जीवन बीमा प्रीमियम या अन्य सुविधाओं के लिए शुल्क तय करने का अधिकार होगा.
माइक्रो फाइनेंस संस्थान (विकास नियमन) विधेयक, 2012 के तहत राष्ट्रीय स्तर पर माइक्रो फाइनेंस विकास परिषद का गठन किया जाना है. दूसरे स्तर पर राज्य स्तरीय माइक्रो फाइनेंस परिषद का गठन होगा. जबकि तीसरे स्तर पर जिला स्तरीय माइक्रो फाइनेंस समितियां होंगी. उक्त तीनों परिषदें समिति हर तीन महीने पर भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी रिपोर्ट पेश करेंगी.
कॉपीराइट संशोधन विधेयक 2010 (प्रतिलिप्याधिकार संशोधन विधेयक) राज्य सभा में पारित 
कॉपीराइट संशोधन विधेयक 2010 (प्रतिलिप्याधिकार संशोधन विधेयक) राज्य सभा में पारित हुआ. मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने 17 मई 2012 को प्रतिलिप्याधिकार संशोधन विधेयक राज्य सभा में पेश किया. प्रतिलिप्याधिकार संशोधन विधेयक 2010 में वर्ष 1957 में मूल रूप से पारित किये गए प्रतिलिप्याधिकार विधेयक को अंतर्राष्ट्रीय मानकों और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के प्रावधानों के अनुरूप बनाने की व्यवस्था है. कॉपीराइट संशोधन विधेयक 2010 (प्रतिलिप्याधिकार संशोधन विधेयक) के तहत रचनाधर्मियों कलाकारों को उनकी मेहनत की रॉयल्टी मिलनी है, जिससे सांस्कृतिक सृजनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा. विधेयक में प्रावधान है कि गीतकारों, गायकों, संगीतकारों और फिल्म निर्देशकों को उनकी रचनाओं के टेलीविजन पर प्रसारण के दौरान रायल्टी मिलेगी. कापीराइट का विस्तार इंटरनेट जैसे आधुनिक संचार माध्यमों पर भी किया गया है. कॉपीराइट संशोधन विधेयक 2010 में पायरेसी के खिलाफ प्रावधान सहित कापीराइट की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रयास भी किए गए हैं. विधेयक के तहत पायरेसी के मामले में दंड का प्रावधान भी किया गया है. कापीराइट मालिक के निधन के मामले में उनके कानूनी उत्तराधिकारी को रायल्टी मिलेगी. फिल्मों के मामले में निर्देशक को कापीराइट के दायरे में नहीं रखा गया है.

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