देश न चलाने लगें जज : चीफ जस्टिस
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कहा, अगर कार्यपालिका कोर्ट के निर्देश मानने से मना कर दे तो क्या होगा
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जस्टिस कपाडिय़ा शनिवार को 'ज्यूरिसप्रूडेंस ऑफ कांस्टीट्यूशनल स्ट्रक्चर' विषय पर व्याख्यान दे रहे रहे थे। उन्होंने सोने के अधिकार संबंधी निर्णय पर भी सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में गत फरवरी में निर्णय दिया था। कपाडिय़ा ने कहा, 'पहले हमने कहा- सुरक्षा के साथ जीने का हक। फिर इसका विस्तार किया और कहा कि सम्मानपूर्वक जीने का हक। अब हमने इसमें सोने के अधिकार को भी शामिल कर लिया है। आखिर हम जा कहां रहे हैं? यह आलोचना नहीं है। लेकिन क्या इसे लागू कराया जा सकता है।' सोच लें, फैसले पर अमल संभव है या नहीं : जस्टिस ने कहा, 'जब जज अधिकार का विस्तार करें, तो जरूर सोच लें कि क्या इस पर अमल संभव है। यदि जज नीतिगत फैसला देते हैं, जिसे लागू कराना मुश्किल है। सरकार इसे मानने से इनकार कर देती है। तब आप क्या करेंगे? अवमानना का मामला दर्ज करेंगे या फैसले को लागू करेंगे?' सरकार के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण न करें : चीफ जस्टिस ने कहा, 'जजों को देश नहीं चलाना चाहिए। हमें सख्त नियमों के भीतर काम करने की जरूरत है। जब कभी आप किसी कानून को खारिज करें तो ध्यान रखें कि सरकार के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप न हो। हम जनता के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।' उन्होंने कहा 'हमें निर्णय देते वक्त संविधान की मूल बातों को ध्यान रखना चाहिए। इसमें न्यायपालिका, संसद और कार्यपालिका के कामों का स्पष्ट बंटवारा है। ' इनके बारे में भी बोले चीफ जस्टिस : केंद्र-राज्य संबंध- जजों को इस बारे में संविधान का खास ख्याल रखना चाहिए। यह कि हमारा संविधान संघीय नहीं है लेकिन इसका झुकाव संघ की ओर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राज्य के अधिकार छीने जा सकते हैं। पर्यावरण संबंधी चिंता : ऐसे निर्णय देते वक्त हमें टिकाऊ विकास का ध्यान भी रखना होगा। बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था पर असर के बारे में सोचना होगा। यानी, संतुलन बनाना होगा। आम आदमी : देश के सभी विद्यार्थियों को संविधान और कानून की जानकारी देनी चाहिए। इससे उन्हें अपने अधिकार और कर्तव्य पता होंगे। पदोन्नति में आरक्षण असंवैधानिक : वाहनवती एससी-एसटी वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण कानूनी तौर से संभव नहीं है। यह जानकारी अटार्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर दी है। सूत्रों के मुताबिक विधि एवं कानून मंत्रालय को लिखे पत्र में उन्होंने सरकार को आगाह किया है कि अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है तो उसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट में फैसला निरस्त होने की आशंका है। उनके इस पत्र से केंद्र के आरक्षण दिए जाने के प्रयास रुक सकते हैं। एससी/एसटी को आरक्षण देने के लिए 21 अगस्त को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस सर्वदलीय बैठक में आम सहमति नहीं बन सकी और बैठक बेनतीजा रही। हालांकि प्रधानमंत्री ने कहा था कि आरक्षण देने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन भी करना पड़ा तो वह पीछे नहीं हटेगी। उल्लेखनीय है कि गत अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार द्वारा एससी/एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण दिए जाने के फैसले को निरस्त कर दिया था। |
Sunday, 26 August 2012
देश न चलाने लगें जज : चीफ जस्टिस
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