Monday, 10 September 2012

देरी के कारण खारिज नहीं कर सकते क्रिमिनल केस: सुप्रीम कोर्ट


                                    देरी के कारण खारिज नहीं कर सकते क्रिमिनल केस: सुप्रीम कोर्ट 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फैसले में देरी के कारण किसी आपराधिक मामले को खारिज नहीं किया जा सकता। करीब ३४ साल से चल रहे एक मुकदमे में शीर्ष कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है। यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में २५ और सुप्रीम कोर्ट में छह साल चला। इसके बाद पांच लोगों की हत्या के इस केस में तीन लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।

जस्टिस पी. सदाशिवम और बीएस चौहान की बेंच ने बचाव पक्ष के तर्कों को खारिज कर दिया। उन्होंने दलील दी थी कि मृतकों के रिश्तेदारों के बयानों के आधार पर उन्हें दोषी करार दिया जाना गलत है। बेंच ने कहा कि केवल इस आधार पर चश्मदीद गवाह का बयान खारिज नहीं किया जा सकता कि वह मृतक का रिश्तेदार या दोस्त है। परिवार के सदस्य या किसी दोस्त के गवाह के तौर पर परीक्षण पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। 

उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के एक गांव में 1978 में सिंचाई के पानी को लेकर हुए विवाद में आरोपियों ने पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। निचली कोर्ट ने 1980 में आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में 25 साल मामला चला। हाईकोर्ट ने फैसला पलटते हुए कहा कि निचली अदालत से चूक हुई है। उसने मृतकों से जुड़े गवाहों के बयानों को सबूत नहीं माना। उसने 2006 में आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई। जीवित बचे आरोपियों श्याम बाबू, बाबू राम और तेजराम ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 

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